Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३, ५.] चोइसगुणट्ठाणेसु पयडीणमुदयवोच्छेदपरूवणा
एत्थ एदासु पुच्छासु विसमपुच्छाणमत्थो वुच्चदे । तं जहा- बंधवोच्छेदो एत्थेव सुत्तसिद्धो त्ति तं मोत्तूण पयडीणमुदयवोच्छेदं ताव वत्तइस्सामो । मिच्छत्त-एइंदिय-बीइंदियतीइंदिय-चउरिंदियजादि-आदाव-थावर-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणाणं दसण्हूं पयडीणं मिच्छाइट्ठिस्स चरिमसमयम्मि उदयवोच्छेदो । एसो महाकम्मपयडिपाहुडउववसो । चुण्णिसुत्तकत्ताराणमुवएसेण पंचण्णं पयडीणमुदयवोच्छेदो, चदुजादि-थावराणं सासणसम्मादिट्ठिम्हि उदयवोच्छेदब्भुवगमादो। अणंताणुबंधिकोह-माण-माया-लोहाणं सासणसम्माइट्टिचरिमसमए उदयवोच्छेदो । सम्मामिच्छत्तस्स सम्मामिच्छाइट्टिम्हि उदयवोच्छेदो । अपच्चक्खाणावरणकोह-माण-माया-लोह-णिरयाउदेवाउ-णिरयगइ-देवगइ-वेउव्वियसरीर-वेउवियसरीरअंगोवंग-चत्तारिआणुपुन्वि-दुभग-अणादेज्जअजसकित्तीणं सत्तारसण्णमेदासिं पयडीणं असंजदसम्मादिट्टिम्हि उदयवोच्छेदो। पञ्चक्खाणावरणकोह-माण-माया-लोह-तिरिक्खाउ-तिरिक्खगइ-उज्जोव-णीचागोदाणमट्ठण्णं पयडीणं संजदासंजदम्मि उदयवोच्छेदो । णिद्दाणिद्दा-पयलापयला-थीणगिद्धि-आहारसरीरदुगाणं पंचण्णं पयडीणं
___ इन प्रश्नोंमें विषम प्रश्नोंका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है-चूंकि बन्धव्युच्छेद यहां ही सूत्रसे सिद्ध है अत एव उसको छोड़कर प्रकृतियों के उदयव्युच्छेदको कहते हैं । मिथ्यात्व, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति, आताप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण, इन दश प्रकृतियोंका उदयव्युच्छेद मिथ्यादृष्टि गुणस्थानके अन्तिम समयमें होता है । यह महाकर्मप्रकृतिप्राभतका उपदेश है । चूर्णिसूत्रोंके कर्ता यतिवृषभाचार्यके उपदेशसे मिथ्यात्व गुणस्थानके अन्तिम समयमें पांच प्र उदयव्युच्छेद होता है, क्योंकि, चार जाति और स्थावर प्रकृतियोंका उद्यव्युच्छेद सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें माना गया है । अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभका उदयध्युच्छेद सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानके अन्तिम समयमें होता है । सम्यग्मिथ्यात्वका उदयव्युच्छेद सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें होता है। अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, नारकायु, देवायु, नरकगति, देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, चार आनुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय और अयशकीर्ति, इन सत्तरह प्रकृतियोंका उदयव्युच्छेद असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें होता है । प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, तिर्यगायु, तिर्यग्गति, उद्योत और नीच गोत्र, इन आठ प्रकृतियोंका उदयव्युच्छेद संयतासंयतगुणस्थानमें होता है। निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, आहारशरीर और आहारशरीरांगोपांग, इन पांच प्रकृतियोंका उदयव्युच्छेद प्रमत्तसंयत
१ प्रतिषु णमिऊणकत्ताराण-' इति पाठः ।।
२ मिच्छे मिच्छादावं मुहुमतियं सासणे अणेइंदी। थावरवियलं मिस्से मिस्सं च य उदयवोच्छिण्णा॥ गो. क. २६५.
३ अयदे विदियकसाया वेगुब्वियछक्क णिरय-देवाऊ। मणुय-तिरियाणुपुव्वी दुब्भगणादेज्ज अज्जसयं ॥ गो. क. २६६.
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