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(२)
नके वृक्ष मदोन्मत्त हो रहे है. गुलाबकी क्यारीयों में गुलाबके पुष्प बहुतायतसे खिले हुए है. कितनेही पुष्प तो पवनके झकोंरोंसे आसनभ्रष्ट हो नीचे गिर२ पड़ते है, मंदिरकी दूसरी तरफ स्त्रीयोंका एक समूह सा दिखलाई देता है, उनमेंसे कई एक औरतें बैठकर गीतगान कर रही है, कई औरते नाच कर रही है, देखिये ! सूर्यास्त हो गया है, इधर मंदिरमें आरतीभी हो चूकी हैं, मंदिरसे दो व्यक्ति निकल कर बैठक की जगह आकर बैठ गये, और श्रमसे विक्षुब्ध मास्तिष्कको क्षणीक मौनसे शांत करने लगे. उद्यानके फलद्रूष पुष्पके संसर्गसे सुगं. धित और शीतल वायुका अनुभव कर एकने शांति का भंग करते हुए बोलना प्रारंभ किया
एक०-मिस्टर वृद्धिचंदजी सामने देखिये इन्द्रमलजी आ रहे है या कोई और ?
वृद्धि०-हां हेतो इन्द्रमलजी ही क्यो भाई गुलाबचंदजी! ये कब आये है ?
गुला०-शायद आजहीं आयें होगें देखिये ! वे इधरहीको आ रहेहै. (दोनो व्यक्ति हाथ बड़ाते हुए) आईये ! आईये !! बैठीये!!! ___इन्द्र०-आप बैठीये मैं प्रभुदर्शन कर वापिस उपस्थित होता हूं. (आगंतुक महाशय देवालय जा प्रभुदर्शन कर वापिस आकर दोनो व्यक्तियोंके पास बैठ जाते है.)
गुला०-आप कब तशरीफ लाये है ? इन्द्र०-आजही.
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