________________
(१०३)
इन्द्र० - उदयंमी जा तिहि सा पमाणंमिअरीह कीरमाणीए आणाभंगऽणवत्था मिच्छत्त विराहणं पावे ॥ १ ॥
इस गाथासे यह निश्चित होता है कि- उदयवाली ही तिथि ग्रहण करना. अन्यथा करने से आज्ञाभंग आदि दोष होते हैं. इसीसे उदयवाली सप्तमी के दिन सप्तमी है ऐसा मानना, और आराधना अष्टमीकी करना; यही सिद्ध होता हैं ! यदि ऐसा जो न करें तो उपरोक्त (आज्ञाभंगादि) दोष जरुर होते हैं.
वकी० - आपके इस कथनको श्रीउमाखातीजी माहाराजने जो "क्षये पूर्वातिथिः कार्या० " कहा है उसके साथ तो विरोधही आता है, उसका क्या ?
इन्द्र० - विरोध नहीं आ सकता, लेकिन इस कथन सें पूर्वोक्त नियम पुष्ट होता है ! देखिये त्रयोदशी उदयवाली होनेसे त्रयोदशी को त्रयोदशी मानना और चतुर्दशीका क्षय होने से तेरस के रोज चतुर्दशीकी आराधना करनाः ऐसी रीति सें तेरस मानने व कहनेसें "उदयंमि" वाला नियम मंजूर हुआ और आराधना चतुर्दशीकी करनेसें "क्षये पूर्वा" का नियमभी पालन हो गया ! इस रीत्यानुसार विरोध आ ही नहीं सकता है. देखिये श्रीमान् जं० वि० मा० लिखते है ( पर्व तिथिप्रकाश पृ. ३६ पंक्ति २० खोलकर) कि - " क्षये पूर्वा ० " नो नियम क्षीणपर्वतिथिने पूर्वतिथिमां आराघवानुं जणावे छे परंतु तेने बदले पूर्वतिथिनो क्षय करी नांखवानुं जणावतो नथी " इससे साबीत होता है कि-क्षय के बख्त पहली तिथि में आराधना करना.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com