________________
(१४५)
इन्द्र० -- इसमें क्या हर्ज है ? जैसे कल्याणकतिथिका तप अन्य तिथि में करके पूर्ति करता है, वैसे इसमें भी समझ लेना । वकी० - ऐसा तो कैसे समझा जाय ? नियम बार तिथियोंका है. जब कि तिथि ही नहीं हैं तो नियम किस बातका १
इन्द्र० - पहली बात तो यह हैं कि-क्षयके वख्त पूर्वति - थिमें दोनो तिथि शरीफ होनेसे क्षीणतिथिकी आराधना भी पूर्वतिथि के साथ हो ही जाती है; यदि उस बारा तिथिके नियमवालेको तिथिकी गिनती ही पूर्ण करना होवे तो अन्य दिवस ब्रह्मचर्य पालकर गिनतीको पूर्ण कर सकता है.
वकी० - वाहजी ! वाह !! कल्याणककें लिये तो शास्त्रकारका हुक्म है कि - कल्याणक दो रीति सें आराधे जाते है. 'निरंतर और सांतर. ' जिसका खुलासा पहले भी हो चुका है. आप पर्वतिथिक्षय को भी कल्याणकपर्व के साथ जोइंट करते हो यहतो आधार बिनाकीही बात हैं. पूर्णिमा - अमावास्या के क्षयवक्त पूर्णिमा - अमावास्याका पौषध अन्यत्र करके पूर्ति करदेना, ऐसा पाठ शायद आपहीको मिला होगा ? (तक्त० इन्द्र०को देते हुए) दिखाइये हमेभीतो वह पाठ.
इन्द्र० मुद्रितपृ. ६" तस्या अप्याराधनं जातमेव." बस इसी से सिद्ध हुआ कि - चतुर्दशी के साथ पूर्णिमाकी आराधनाभी हो गई.
वकी० - बस, हरदम इसी ही पाठको लेकर झूठा ही पीष्टपेषण किया करते हैं ! इस पाठका सच्चा भावार्थ तो मैं पहले ही आपको समझा चुका हूं कि यहां 'तस्याः' एकवचन होने से
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com