Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 214
________________ (१९०) वाला फरमाव्यानुं जणावे छे ज्यारे अमदावादवालाओ तरफथी चोकस सांभल्यु छ के-पू० सिद्धिसूरीश्वरजी महाराज आराधनामां तिथिनी वधघट मानताज नथी. आथी पेपरवालानुं फरमाव्या संबंधीनुं जुठाणुं खुल्लुं पड़ी गयु छे, अने ते म्हें ताजेतरमा हेन्डबीलद्वारा जाहेर पण कर्यु छे. आम छतां "आ. राधनामां तिथिनी वधघट नथीज होती" ए सत्य हजु आपने समजायुं लागतुं नथी, एम पण अमोए सांभल्यु छे. आ वखते संयोगो सानुकुल होवाथी मारी धारणा छ के-ए मुजब जे कोई आचार्य उपाध्याय के पन्यासजीने न समजातुं होय ते ने समजाववा अत्रे बनता सर्व प्रयास करी संघमां शांति स्थापवी. ते पहेलां आप जणावो तो हाल हुं योगमा होवा छतां सवलता करीने वाटाघाट माटे आपनी पासे एक बे दिवसमां आवु. टीप्पनामा पर्वतिथिनां क्षय के वृद्धि होय त्यारे पूर्व के पूर्वतरनी अपर्व तिथिनां क्षय के वृद्धि आराधनामां कराय, एम शास्त्र पण कहे छे अने करायज छे. एम समस्त संघनी मान्यता अने आचरणा हती अने छे. आम छतां कोई कारणथी हवे आपने आराधनामां भय के वृद्धि करवानुं सूजतुं होय तो ते सदंतर शास्त्र अने परंपराथी विरुद्धज छे. एम चर्चा करी (ने खुलासो करवा) जुठो तिथिवाद उभो करीने ते टकाववा यत्न करनार पंथना उपा. जंबुविजयजीने म्हें अत्रे महा सुदी ८ ना दिने पत्र मोकलीने टाइम पण माग्यो हतो, पण खेदनी बीना के ए पंथनी आदत मुजब तेओ तेनोजवावज आप्या विना अहिंथी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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