Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 241
________________ (२१७) जिसदिन समाप्त होते है उसीदिन कहते हैं कि-आज मैंने दोनों या तीनों कार्य पूर्ण किये. अर्थात् एक कार्य थोड़े दिनसे प्रारंभ किया हुवा हो और एक कार्य कितनेही दिन पहलेकी शरूआतवाला हो, और एक कार्य उसीदिन चालु किया हो लेकिन वे सब कार्य यदि एक दिन में समाप्त हो जाय तब उन सब कार्योकी समाप्ति एक दिनमेंही मानी जाती है. और यह दृष्टान्त भी शास्त्रकारने वादीको तिथियोंके अवयवोंकी न्युना. धिक्यता माननेके संबंध दिया है, न कि आराधना करने बाबत. ___ इसके अलावा वादीका प्रश्न यह है कि-त्रयोदशीको चतुदशीपने स्वीकार करना कैसे युक्त है ? इसके जबाबमें प्रतिवादी कहता है कि-इसका जबाब तो स्वयं शास्त्रकार ही फरमाते है कि-'त्रयोदशीके दिन त्रयोदशी, ऐसे व्यपदेशका भी असंभव है' इससे यह बात सिद्ध हुई है कि-श्रीधर्मसागरजी माहाराज भी पर्वतिथिके क्षयमें पूर्वतिथिका क्षय ही करनेको फरमाते है. यहांपर वादी अपने पुरावेमें हीरप्रश्नको पेशकरके कहते है कि-'पंचमीके क्षय में पंचमीका तप पूर्वतिथि में करना और पूर्णिमाके क्षयवक्त पूर्णिमाका तप त्रयोदशी चतुर्दशीमें करना और त्रयोदशीके दिन भूल जाय तो प्रतिपत्को करे.' इससे साबीत हुआ कि-क्षीणतिथिका तप ही पूर्वतिथिमें करना, लेकिन उसवक्त पूर्वतिथिको परतिथि नहीं बनाना. इसके जबाबमें प्रतिवादिका कहना है कि-यहां प्रश्नकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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