________________
(२२०)
अगर वादि ऐसा कहे कि - 'एकमको भी पहली दूसरी
A.
नहीं कही है तो एकमकी वृद्धि भी नहीं होती है, ऐसा ही मानना होगा' इसका जबाब यह है कि - कल्पवचन किसीभी तरहसे दूसरी एकमके दिन आताही नहीं हैं. सबब एकमको पहली दूसरी कहने की आवश्यकता नहीं रहती हैं. और अमावास्या के संबंध में तो दोनोही अमावास्याओं में कल्पवांचन आता है. इसीसे अमावास्या को पहली दूसरी कहनेकी खास आवश्य कता रहती है लेकिन अमावास्या में भी एकवचनात्मक प्रयोग होने से साबीत हुआ कि श्रीहीरसूरिजी माहाराज पर्वतिथियों की क्षयवृद्धि नहीं मानते है. (थे)
अब वादी प्रतिवादीकी इन दलीलोका विचार करते हुए मालूम होता है कि - वादी इन्द्रमलजी की दलीलें शास्त्र श्रीततरंगिणी व व्याकरण शास्त्र के कायदे से खिलाफ है. सबब " तस्या अप्याराधनं जातम् " इसका अर्थ : - 'एकवचनात्मक प्रयोग होने से ' दोनोकी आराधना होगई ऐसा नहीं हो सकता; और सह अर्थ में तृतीया विभक्ति होनी चाहिये वहभी नही है.
" एवं क्षीण तिथावपि " वाला संबंध भी वादीकी मान्यताको सिद्ध नहीं कर सकता. सबब वहां 'क्षीणतिथि वक्त तुझे तो क्षीणतिथि ही नहि रहेगी' ऐसी बादिको आपत्ति दी है, नकि आराधना बाबत कोइ बात है. इसके अलावा शास्त्रकारतो साफ २ जाहिर करते है कि - उसदिन त्रयोदशीके व्यपदेशकी शंका तक भी नही करना, और उस त्रयोदशीकों तो शास्त्रकार ताम्र
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com