Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 240
________________ वक्त पूर्वतिथिमें आज मैंने दोनो कार्य समाप्त किये ऐसा अर्थ करके वादि इन दोनो वाक्योंको अपनी मान्यताके पुरावेमें पुख्ता प्रमाण मानते है. इन दोनो वाक्योंके लिये प्रतिवादिका कहना यह है किउस पाठमें "तस्याः " एकवचन होनेसे क्षयप्रसंगके अंदर पूर्वतिथिमें दोनो तिथियोंकी आराधना हो गई ऐसा अर्थ व्याकरण शास्त्र के नियमसे खिलाफ है. और क्षीणतिथिके वक्त पूर्वतिथिमें आज मैंने दोनो कार्य समाप्त किये यह वाक्यभी असंगत है सबब "क्षीणतिथावपि" यह पद पूर्वपदके साथ संबंध वाला है, नकि पश्चात पदके साथ. इस वाक्यका संबंध ऐसा है कि मुद्रित तत्त्व पृ. १३ पं० ७ वी "यदि स्वमत्यातिथेरवयवन्युनाधिककल्पनां करिष्यसि, तदा आजन्मव्याकुलित घेता भविष्यसीति तु स्वयमेव किं ना. लोचयसि ? एवं क्षीणतिथावपि" ___अर्थः-यदि तूं अपनि मतिसे तिथिके अवयवोंकी न्युनाधिकपनेकी कल्पनाओंको करेगा तो जन्मपर्यंत व्याकुलित चितवाला रहेगा! वैसे ही क्षीणतिथिमेंमी समझ लेना. अर्थात् क्षीणतिथिके वक्त पूर्वतिथिमें वह क्षीणतिथि ज्यादा होनेसे तुझे तो किसीवक्त उस क्षीणतिथिको क्षीणपने मानने में भी भारी आपत्ति है ! ऐसा कहकर तीसरे दृष्टान्तमें ही, "कार्यद्वयमद्यकृतवानहम्" ऐसा पाठ शास्त्रकारने फरमाया है ! कहनेका भाव यह कि-लौकिकमें भी यह बात प्रसिद्ध ही है कि-जितने कार्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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