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(१९३) पर्वतिथिप्रकाश में जितनी २ गलतीयें लगती हो उनको कारणसहित लिखकर देओ, बाद में विचार करके जबाब दिया जायगा, और पुछने जैसा होगा वह पुछवावेंगें. जबाब देने जैसा नहीं होगा तो जबाब नहीं देवेंगें ! इसके जबाब में श्री हंससागरजीने कहा कि आप गलतीवाले लिखानको मागते है परंतु ऐसा सब लिखानतो आपकी छपवाई हुई पुस्तकही में होने से मैं यहीं परही दिखाता हूं, फिर लिखकर देनेकी आवश्यकता ही क्या हैं ? मैं आपके लिखानकों लगभग झुठा ही कहता हूं, और इसीलिये आपसे मेरी याचना है कि आप मुझको कोइ भी शास्त्रकी पंक्ति देकर आपके उन लिखानोंको 'सच्चे है' ऐसा शास्त्रदृष्टि से साबीत कर दीजिये; साबीत होनेसे विना आग्रहसे आपके समक्ष मिथ्यादुष्कृत देउंगा. ऐसा श्री इंससागरजीने कहा तो भी अपने हठको नहीं छोड़ते हुए सिर्फ एक ही बातको पकड़ रखी कि मेरे तो लिखित चर्चा करना है ! तब श्री हंससागरजीने कहा कि लेखित चर्चा भी आप किस रित्यानुसार चाहते है ? तब जं० वि० ने लिखवाया कि-तपागच्छ के सभी पक्षवाले जबाबदार व्यक्तियोंका प्रतिनिधि हो, और योग्यमध्यस्थोंकी समक्ष जबाबदारी पूर्वक मतभेदवाले विषयोंकी लेखित चर्चा होने बाद मध्यस्थोंके दिये हुए चुकादे ( फैसले) को समस्त संघ और मतभेदवाले पक्ष मंजुर करें, और उसी मुताबिक बर्ताव करें; ऐसा लिखवाया. इसके बाद कितनीक दूसरी बात करके श्री हंससागरजीने कहा कि - आपको मेरी
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