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(२०५) अमोने लखी शको छो. कदाचने तमारी मरजी तेम करवानी न थाय अने तमारा प्रशिष्ये जाहेर करेली अमोए तमने लखी जणावेली, तथा तमोए "जोके" करीने स्वीकारेली वात अनुसार चर्चाज करवानी तमारी मरजी थायतो अनुवादमां जेटलं जुठं साबीत थाय तेटलं अमारे सुधारयु. बाकी जेटलुं सत्य रहे तेटलुं तमारे स्वीकार ए शरते तमारी लिखित सहीथी कबुलत २४ कलाकमां अमोने लखी जणावशो. तमारा प्रशिध्ये के बीजा कोइने वचमां पड़वानी जरुर नथी; तेमज असंगत उत्तरो उपर हवे अमे ध्यान नहीं आपीए अने अंगत नाम विगेरे लखवामां पण पद विगेरे नहिं लखवानो तमारा तथा तमारा प्रशिष्य तरफथी जे अविवेक दाखवाय छे ते योग्यास्माओ माटे अनिष्ट छ, तेनी नोंध लेशो.
लि. जंबुविजय (इन्द्रमलजीकी ओर देखकर) जनाब ! इन्द्रमलजीसाहब !! इस पत्रके लिखानकी उलटसुलट गुलाटोकी व्याख्या करूं तो कमसे कम चार-पांच कलाक तक अवश्यमेव आपको टाइम नीकालना पडे ! लेकिन वक्त के अभावसे यह बात आपही के बिचारपर छोड़कर इतना तो जरुर कहूंगा कि जं० वि० ने लिखा है कि-"पण तेतो फागण मुद ५ गुरुवारे अहिं शांतिभुवनमां बोलायेला शब्दोनो उतारो छे ते तेमने भुल जोइये नहिं" यह बात गलत ही है. क्योंकि-ऐसा लिखकर उनोने जो ऐसा बताना चाहा कि-"आप जणावो तेमनी साये"
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