Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

View full book text
Previous | Next

Page 233
________________ (२०९) अमारा अनुवादनुं जुट्ठापणुं साबीत करवानी प्रतिज्ञा जणाववामा निष्फल निवड्या छो, ए एकवार फरीथी पण सिद्ध थइ चूक्युं छे. तमोए मानेली अने तमारा प्रशिष्ये जाहेर करेली चेलेंज झीलीने अमोए तमारी साथे ज्यारथी पत्रव्यवहार आदर्यो त्यारथी अमारी प्रतिज्ञा तो ए दीवा जेनी थइ चूकी छे के अमारी साथे चर्चा करवा मागनारने अमो श्रीतत्त्वतरंगिणी ग्रन्थना आधारे पर्वतिथिनी क्षयवृद्धिए अपर्वतिथिनी क्षयवृद्धि करवी ए शास्त्रविरुद्ध छे, किंतु तत्ततिथ्याराधननी पूर्वोत्तर दिवसे व्यवस्था करवी एज शास्त्रोक्त छ, एम साबीत करी आपवा तैयार छीए. तमो श्रीतत्त्वतरंगिणी आदि शास्त्र अने परंपराथी तमारा पक्षनी सिद्धि करवानुं लखो छो, तो हवे ते मुद्दा उपर आवीने तमोने लखवु प्राप्त थाय छे के-(१) श्रीतत्त्वतरंगिणी, (२) श्रीहीरप्रश्न, (३) श्रीसेनप्रश्न, (४) श्रीश्राद्धविधि, (५) सूर्यप्र. ज्ञप्ति, (६) ज्योतिषकरंडक, (७) श्रीकल्पकिरणावली, (८) श्री कल्पसुबोधिका, (९) बृहत्कल्पभाष्य, (१०) श्रीनिशीथभाष्य, (११) श्रीनिशीथचूर्णि, (१२) श्रीयोगविंशिका, (१३) श्रीकल्पअवचूरी, (१४) श्रीजंबुद्विपप्रज्ञप्ति, (१५) श्रीधर्मसंग्रह, (१६) श्रीदशाश्रुतस्कंध, आ मौलिक शास्त्रोथी अने तेज शास्त्रोक्त पाठोथी अविरुद्ध जती मूल परंपराथी तमो तमारो पक्ष अमो जणावीए ते स्थले अने अमो जणावीए ते मध्यस्थो आगल सिद्ध करवा हजी तैयार छो? तमारो पक्ष असत्य छे ते उपरोक्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248