Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

View full book text
Previous | Next

Page 237
________________ (२१३) इस पत्रको जंबुविजयजीने लिया ही नहीं. चैत्र कृष्ण ४ शामको इस पत्रको लेकर ज. वि. को देनेके लिये एक ग्रहस्थ वहां शांतिभुवनमें गया था, उस वक्त वहां आचार्य विजयप्रतापमूरिजी व पं० धर्मविजयजी भी वहीं पर बैठे हुए थे! उन्हीके सामने ही पत्र लेनेसे ज० वि०ने साफ इनकार किया, और चैत्र कृष्ण (गु० फा० कृ०) व्हेली सुबह ही पालीतानेसे रवाना हो गये! और शिहोर मुकामको जाकर चैत्रशुक्ल १५ तक वहां रहे, लेकिन पालीताने में तो नहीं ही रहे ! पालीतानेकी इस चर्चा संबंधी मामलेको श्रीमान जं० वि० ने पूर्वोक्त रीत्यानुसार खतम कर दिया! अब इन पत्रोंपर जीरे करनेका कार्य वकीलसाहबकी सुपुर्दगीमें रखकर मैं तो विश्रांति लेता हूं. वकी०-अब इस चर्चाका अर्थात् मेरे और इन्द्रमलजी साहबके बीचमें जो चर्चा हुई, तथा श्रीयुत् सहस्रमलजीसाहबने जो पालीताणेका श्रीमान् आचार्य श्रीसागरानन्दसूरीश्वरजी माहाराज व मुनि श्रीहंससागरजी मा० का, उ० श्रीजंबुवि. जयजीके साथमें होये हुए पत्रव्यवहारको सुनाया, इन दोनोअर्थात् मेरी चर्चा व पालीतानेके पत्रव्यवहारका फैसला श्रीमान् पंडितजी साहबने ही सुना देना चाहिये ! श्रीयुत् सहस्रमलजी साहबने इन पत्रोंपर जीरे करनेका कार्य मुझपर रखा है, लेकिन समयका अभाव होनेसे इसके बिचारको भी मैं श्रीमान् पंडितसाहबके उपर ही रखता हु. पंडित-अच्छा, आप सर्व सजनोंने सबही मामला मेरे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248