Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 236
________________ (२१३) सह०-दूसरे दिन एक पत्र श्री हंससागरजीने जं० वि० को लिख भेजा उसीको अब में सुनाता हूं, आप सुनिये. पन्नालालनी धर्मशाळा पालीताणा फा. वदि ४ श्रीजंबुविजयजी योग्य, श्रीतत्वतरंगिणीना अनुवादनां जुटाणांने अंगे तमो अठवाडीयामां अहिं तमोए बोलावेला मध्यस्थो समक्ष पू० आचार्य श्रीसागरानंदसूरीश्वरजी साथे चर्चा करी नीचोड़मा आवतुं सत्य स्वीकारी प्रवृत्ति सुधारवाना छो, तो तेनी साथे श्रीकर्मप्रकृति, श्रीपंचसंग्रह अने विविधदान प्रश्नोत्तार वीजा भागनी प्रस्तावना तथा टीप्पणीनां पण जुट्टाणां साबीत करवानी मारी महा शुदि ८ थी शरू थयेली मागणी स्वीकारशो. ता. क:-आ बावतमा सत्य स्वीकारवानी प्रतिज्ञा तमारी अने मारी बन्नेनी सरखीज छे. आपनी इच्छा कदाच आ अठवाडीयामां न होय अने आवते अठवाडीये होय तो ते टाईम, अने स्थल तमारा बोलावेला मल्यस्थोना नाम जणाववा साथे जणावशो. योग्य मध्यस्थो, वखत अने स्थान राखवामां तो तमो मार्ग समजो छो. मध्यस्थोनी हाजरीमा टुंका टाइममा निर्णय माटेनी ते सभा करवानुं नकी होवाथी तमारा विहारनो प्रचार तो जुट्टो मनाय छे. लि. मुनि हंससागर. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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