________________
(२१०) श्री तत्त्वतरंगिणी आदि १६ शास्त्रो अने तन्मान्य परंपराथी साबीत करवा अमोतो बेशक तैयारज छीए.
तमारा फा० सुद १५ ना उत्तरमां जणावेली प्रतिज्ञा अने फा० वद २ ना उत्तरमां जणावेली प्रतिज्ञामां फेरफार के एज प्रमाणे तमारा सिद्धचक्रोमां पण पूर्वापर घणोज फेरफार अने जुट्ठाणां आव्या करे छे, तेनुं पण प्रमार्जन करवा तमो तैयार रहेशो के ? अमो ज्यारे शांतिथी वाटाघाट चलाववा मागीए छीए त्यारे तमारा तरफथी तमारा शिष्योना नामे गंदा साहित्य छपावी जुट्टो प्रचार करावाय हे, ते श्रीसंघमां शांति अने सत्य माटेना तमारा सद्हेतुनो अभाव बतावे छे; एम अमारे दुःखते हृदये जणाववुं पड़े छे. फा० वद २ ना तमारा उत्तरमां तमोए ता० क० मां लखेली कलमोमां अमोने बांधो नथी.
जंबुविजय.
इस पत्र में भी जं० वि० ने अगड़ं बगड़ तो लिखा किंतु आचार्य माहाराजने तो यही शोचा कि किसी भी तरह से ये शास्त्रार्थ करें ताकि सत्य वस्तु जनता जान सके। इसी हेतुको लक्ष रखकर इनकी सबही बातोंको मंजुर करके आचार्यमाहाराजश्रीने उनको और पत्र लिखा उसीभी मैं सुनाता हूं. पन्नालाल बावुनी धर्मशाळा पालीताणा फा. व. श्रीजंबु विजयजी योग्य,
शास्त्र अने परंपराने अनुसरनारा, जे लौकीक टीप्पणामां पर्वतिथिनी क्षयवृद्धिए आराधनामां तेनाथी पूर्वनी अपर्वतिथि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com