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(२०७) इस मुदेको ही लक्षमें रखकर उसीवक्त जो जवाब दिया उसीको मैं सुनाता हूं आप दत्तचित्त होकर सुनिये. पालीताणा पन्नालाल बावुनी धर्मशाला फा. व. २ श्रीजंबुविजयजी योग्य, _____ अमें योग्य प्रतिज्ञा लखी मोकल्या छतां तमो प्रतिज्ञा करवामां निष्फल नीवड़या छो, शास्त्र अने परंपराथी पर्वतिथिना क्षयके वृद्धिए पूर्वतिथिनो क्षय के वृद्धि कराय छ, तेनी असत्यता साबीत करवानी तमे प्रतिज्ञा करता नथी ए तमारा पत्रथी साबीत थाय छे. ता. का-(१) चर्चा वखते पूर्वपक्ष अने उत्तरपक्ष बन्नेनां वचनो
लिखित थाय ए स्वाभाविक हतुं. (२) श्रीतवतरंगिणीना अनुवादनां जुट्ठाणां पण ते . वखते जणाववा माटे अमे तैयार हता अने छीए.
आनन्दसागर. इसके बाद दूसरे दिन एक पत्र श्रीहंससागरजीने लिख भेजा उसको अब सुनाता हूं. __ पालीताणा पन्नालाल बावुनी धर्मशाला फा. व. ३ श्रीजंबुविजयजी योग्य,
श्रीतत्त्वतरंगिणी ग्रंथने अमो सत्य मानीए छीयेज, अने तमो तमारा अनुवादनां जुठाणां सुधारी सत्य स्वीकारवा तैयार छोतो अठवाडियानी अंदरनो कोइपण दिवस जणावी स्थल तथा मध्यस्थोनी गोठवण करी जाहेर करो..
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