Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

View full book text
Previous | Next

Page 230
________________ (२०६) और 'ग्रन्थनाज' ये शब्द तो श्रीहंससागरजीका दूसरी वक्तके बोले हुए हैं, लेकिन वो दूसरी वक्त कहां ? और किस दिन ? और कोनसी टाईम पर बोलेथे उस बातकों तो जं० वि० स्वाहाः ही कर गये है !!! (इतने में) वृद्धि-नहीं करें तो दसरा उपाय ही नहीं था! सबब श्रीहंससागरजी पंचमीके शिवाय इनसे मिले ही नहीं. अब रहा फाल्गुन शुक्ल १३ का दिन. उस दिन तो जं० वि० के साथ बात करनेका मोका ही नहीं आया, और उसदिन श्रीहंससागरजी मा० ने जोभी कुछ कहाथा, वहतो लेकचरके तौर पर था. (बीचहीमें) . सह-उसमें भी उपरोक्त शब्दतो नहींही थे, तो फिर जं. वि० ये शब्द श्रीहंससागरजीसे कहां और कब मुनेथे ? उसका तो खुलासा जं० वि० ने इस पत्रमें किया ही नहीं ! (इतनेमें) पन्ना०-वाह ! साहब !! सहस्रमलजी वाह!!! आपतो भूलगये परंतु त्रयोदशीकी रातको स्वप्नमें आकर श्रीहंससागरजीने चुपचाप ज० वि० को कहाथा कि-"आप जणावो तेमनी साथ" और "ग्रन्थनाज" सबब जं० वि० ने स्वप्नको छुपाकर शब्दको कायम रखे! अच्छा, फिर आगेको क्या हुआ ? सो कहिये ! सबही हँसते है) सह०-जं० वि० ने किसी तरहसे चर्चा मेंसें छुट जानेका प्रयत्न किया, लेकिन श्री आचार्यमाहाराजने तो इनके उलटेपुलटे लिखानकी उपेक्षा करके, ये किसी तरहसे चर्चा करें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248