Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 228
________________ (२०) होवानु लख्युं छे, पण तेतो फागण सुद ५ गुरूवारे अहिं शांतिभुवनमां बोलायेला शब्दोनो उतारो छे, ते तेगणे भुलवू जोइये नहिं. ___तमारा प्रशिष्ये बीजूं कैटलुक जे लख्युं छे, ते तेमना जेवानेज छाजतुं होइ अमे उपेक्षा करीए छीए. लखवानी मतलब एछ के-तमारे अने तमारा प्रशिष्यने जो आम पोताना बोलमांथी अने जोखमदारीमांथी पाछलथी छटकाज शोधवा पड़े तो बहेत्तर छ के-ए जनतानी आँखे पाटा बांधनारूं भभकभयु, तेमणे तमारा नामें बोलवु जोइये नहिं. अने तमारे तेमने छूट आपवी जोइये नहिं. अस्तु ___हवे तमोए अमारा उत्तरमा लख्यु के के-"मुनि श्रीहंससागरजीए तत्त्वतरंगिणीना तमारा अनुवादनुं जुट्ठापणुं सावीत करवा माटे ए वात करी हती" जो अनुवादने माटे ए वात करी हती तो ते पण अमो अमारा पत्रमा लखी गया छीए, तेम भले अमारी साथे चर्चा करवी तमोने कबुल छे ? जोके अनुवादनुं जुट्ठापणु कहेनाराओने अमे कही दीधुं छे के-'तमो जुट्ठा लागता स्थलो संबंधपूर्वक जुठा लागवानां कारणोसर अमोने लखी जणावो' न मालुम के केम आ धुंटडो तेमने गले उतरतो नथी! तमोए ता.१४-५-३८ ना तमारा सिद्धचक्रमां अनुवादनां केटलांक स्थलो जुट्टा बताववानी चेष्ठा करी हती, तमोर ते स्थलो तुटक आपेलां छे, ते जो तमारी इच्छा थाय तो संबंधपूर्वक संपूर्ण लखीने ते जुट्ठा होवाना कारणो नमो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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