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इन दोनों पत्रोंका जवाब जं०वि०ने कैसी पॉलीसीपूर्वक 'चर्चाको उडा देनेवाला दिया' उसको भी मैं सुनाता हूं. मु. पालीताणा ठे. शान्तिभुवन फागणवदि २ सोम आचार्य श्रीमान् सागरानन्दसूरिजी,
योग्य लखवानुं के तमारा उपर फा. सुद १५ शनीवारे नीचे प्रमाणे कागल मोकल्यो हतो (वह पत्र मैंने आप सबको पहले सुना दिया है उसीकी नकल यहां पर दर्जथी) आ पत्रनो तमोर तेज दिवसे नीचे प्रमाणे उत्तर मोकल्यो छे. ( पू. आचार्यमाहाराजका पत्र भी मैं पहले आपको सुना चुका हूं उसी की नकल यहां परभी दर्ज हैं . )
अमोए तमोने कोइपण निरर्थक इस्यु काढया विना शुद्ध हृदये मुद्दानो उत्तर आपवानी विनंति करेली हती, छतां वे प्रमाणे तमो तमारी कालजुनी पद्धति अनुसार नथीज आपी शक्या ए खेदनो विषय के.
तमारा उत्तरमां- पक्ष, प्रतिपक्ष, प्रतिज्ञा आदिनी मड़ागांठ तमारे नाखवी जोईती न हती. तमारा प्रशिष्यना कथननो अमोर तमोने जे हवालो आप्यो हतो ते प्रमाणे तमोने कबूल छे के नहिं ? एटलोज खुलासो जणाववानी तमारे जरुर हती.
तमारा उत्तरमां तमोए लख्यूँ के के "जो के मुनिश्री हंससागरजीएतच्चतरंगिणीना तमारा अनुवादनुं जुट्ठापणु साबीत करवा माटे ए बात करी हती" आथी हंससागरजीना शब्दोनो अमोए आपेलो हवालो सत्य छे एमतो तमोए स्वीकार्य पण
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