Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

View full book text
Previous | Next

Page 227
________________ ते अनुवादनुं जुष्ठापणु साबीत करवा माटे, एम लखीने तमोए तिथिचर्चाना मुद्दामांथी खसवान छुठक बारूं शोध्यु छे. फागण वद १ रविवारना सांजे तमारा सदर प्रशिष्य तरफथी अमोने , एक परवीडीयु मोकलवामां आव्यु छे. तेमां तेमणे लख्युं छे के-" आप जणावो ते स्थले आप जणावो ते मध्यस्थ आगल, आप जणावो तेमनी साथे श्रीतवतरंगिणी ग्रन्थनाज आधारे पूज्य श्रीसागरानन्दसूरीश्वरजी माहाराज चर्चा करवा तैयार छ" आ शब्दो मारा कहेला तरीके जणावेला छे तेमां तमें लीटीवाला अक्षरो चर्चामांथी छटकी जवा माटे जाणी जोईने लखेला छे, एटली बीना ते प्रमाणे कबुल राखीने तमो जे "अनुवादनुं जुट्ठापणुं साबीत करवा माटे" वात करी होवार्नु • लखो छोते जुटुंछे एम देखाडी आप्युं छे, वली तमोए तमारा कागलमां जेटलो स्वीकार कर्यो के ए जोतां तमारा प्रशिष्य, जे" आप जणावो तेमनी साथे" तथा "ग्रन्थनाज" एटला शब्दो चर्चामाथी छटकी जवा माटे जाणी जोइने अमोए लख्या होवान कहे छे ते जुलुं छे, एम स्पष्ट मालुम पड़ी आवे छे. आथी तो बुद्धिमान् समाजमा तमो गुरू शिष्य बन्नेनी स्थिति अविश्वासपात्र साबीत थइ जाय तो तेमां नवाइ पामवा जेवू जणातुं नथी. अमो तमारी साथे मौखिक नहिं पण लेखितज चर्चा करवान मागता होवार्नु कारण पण आज हतुं अने छे. तमारा प्रशिष्ये पोताना कागलमां वीरशासन ता. २२ मार्च १९४० पृष्ठ ३८० त्रीजी कोलममां छपाएल शन्दो पोवाना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248