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पालीताणा पन्नालालनी धर्मशाला फा. सु. १५ श्रीजंबुविजयजी
योग्य, लखवानुं के " लौकिक टीप्पणामां पर्वतिथिना क्षय के वृद्धि होय त्यारे आराधनामां तेना पहेलांनी अपर्वतिथिनो क्षय के वृद्धि करायले ते शास्त्र (तवतरंगिणी आदि) अने परंपराथी साबीत करवा तैयार छीए, तमे जो टीप्पणानी अंदर पर्वतिथिना क्षय के वृद्धि होय त्यारे आराधनामां पण पर्वतिथिना क्षय के वृद्धि मानवा, एवं शास्त्र (तश्वतरंगिणी) ना आधारे साबीत करवानी प्रतिज्ञा लखी जणावो. जोके मुनि श्री इंससागरजीए तत्वतरंगिणीना तमारा अनुवादनुं जुट्ठापणुं साबीत करवा माटे ए बात करी हती.
ता. कः - शास्त्राना पाठना अर्थमां जे विवाद रहे तेनो निर्णय भावनगर जेवा स्थानेथी बोलावेला तटस्थ विद्वानो आपे ते बन्ने पक्षे कबुल राखवो, स्थान अने बखत प्रतिज्ञा आवेथी लखाशे.
इसके बाद दूसरे दिन श्रीहंससागरसूरिजी अने आनंदसागरसूरिजी माहाराजने जो पत्र मेजा उसको भी मैं पढता हुं आप सुनिये.
पालीताणा पन्नालाल बावुनी धर्मशाला फा. व. १ श्रीजंबुविजयजी योग्य,
तमोए फागण सुद १५ ना दिने पूज्य आचार्य श्रीमत् सागरानंदसूरीश्वरजीनी उपर लखेल पत्रमां "आप जणावो
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