Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 222
________________ सह-मुझे ऐसी बातोंका सौख होनेसें इस चर्चा प्रसंगमें मैं तो जहांतहां हाजीर ही रहताथा. शांतिभुवनमें भी हाजीर था. आदपरमें भी तंबुके अंदर हाजीर था. पत्रव्यवहारके वक्त भी कितनीक वक्तं हाजीर हो जाता था. वीरशासनवाले ने तो ऐसे मामलोंमें सत्य लिखनेकी सोगन खाई है. उसके लिखामपर क्या विश्वास करना ? इसके बाद फाल्गुन शुक्ल १५ को जं० वि० ने लिखकर एक पत्र श्रीसागरानंदसूरीश्वरजीके पास मेजा, उस पत्रको मैं पढता हुं. सुनीये. .. शांतिभुवन पालीताणा फा. सु. १५ आचार्य श्रीमान् सागरानंदमूरिजी ___"योग्य लखवान के आपना प्रशिष्य मुनि श्रीहंससागरजी तरफथी फागण सुद ५ गुरुवार ता. १५-३-४० ने रोज तेमज फागण सुद १२-१३ गुरूवार ता. २१-३-४० ने रोज घणा संघसमुदाय समक्ष डिडिमनादे जाहेर थयुं छे के-आप (एटले अमो) जणावो ते स्थले, आप जणावो ते मध्यस्थो आगल, आप जणावो तेमनी साथे तत्वतरंगिणी ग्रन्थनाज आधारे पू० श्रीसागरजीमाहाराज चर्चा करवा तैयार छे" आ उपर लखी हकीकत प्रमाणे मुनि श्री हंससागरजीए कही के के नथी कही एवो कोइपण जं. निरर्थक वि० इश्यु काट्या विना शुद्ध हृदये आपने कबूल छ के केम ? अने तेवी चर्चाने अन्ते मध्यस्थो जे निर्णय आपे ते मान्य राखी तदनुसार आपनी प्रवृत्ति यदि सुधारवा योग्य लागे तो सुधारवा आप बंधाओ छो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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