Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 221
________________ होते हो तो आप सब ही मिलकर मेरी तरफसे दलाली करके इनको अपनी बनाई हुई पुस्तक सच्ची है, ऐसा साबीत करने के लिये तैयार कीजिये. वगैरह पाते और सविस्तर बनी हुइ ओर भी वाते सुनाई. इतने में जंबुविजयजीके दो शिष्यो कोलाहल मचाकर गन्दे शब्दोंकी वृष्टि करने लगे. जहां इनके शिष्योंने गरवड मचानेका प्रारंभ किया कि-श्री हंससागरजीतो उसी. वक्त मौन ही पकडकर नीचे ही बैठ गये. इतने में पोलीस भी आ पहुंची! बहुतेरे लोग भी इकठे हो गये ! पोलीसने आकर देखा तो एक पक्षवाले 'उसमें भी एक दो व्यक्ति' ही 'मरु मारूं' 'मरु मारूं' आदि क्रूर शब्दपरंपराकी उद्घोषणापूर्वक धमाधम कर रहे है. पोलीसने उन्हे शांत रखकर कहा किआप दूसरे तंबुमें जाईये ! तब जं० वि० ने कहा कि-पहले इनको यहांसे रवाना कीजिये, बादको हम जावेंगे. तब पोलीसने कहा कि-यहां ही ठहरना है तो शान्तिसे ठहरो. गरबड़ मत करना. इतना कहकर पोलीस तो रवाना हो गई. और कुछ टाईमके बाद जं० वि०ने पालीताणा कूच मनाली ! प्रयोदशी दिन बने हुए वह बनावका सारांश आपको मैंने सुनाया है, दोनोंके शब्दोंशब्द तो मुझे याद नहीं है. वकी०-(इन्द्रमलजीसे) सच्ची हकीकत मुनी साहब ? आप तो कहते थे न, कि-'सागरजी माहाराज शास्त्रार्थ नहीं कर सके तब छ कोशकी प्रदक्षिणाके दिन हंससागरजीद्वारा धांधल करवाई? अब शोचीये कि-धांधल किसने करवाई ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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