Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 219
________________ झुठ लिखा है, झुठ किया है. और उसे छोड़ना ही नहीं है, इसीका यह बहाना है। उसमें जवाबदारी और जोखमदारी वादि प्रतिवादिकी ही है, नकि अन्यलोगोंकी. (सहस्रमलजीसे) अच्छा, बादमें क्या हुआ? सह०-इतनेमें थाली पीटनेवाला भी वहां शांतिभुवनमें आपहुचा, और जाहिर किया कि-'आज तीन बजे मोती सुखी. याकी धमेशालामें आचार्यमाहाराज श्रीसागरानन्दसूरीश्वरजीका तिथिचर्चा संबंधि जाहिर व्याख्यान है वास्ते सबहीने व्याख्यानमें पधारना.' इसके बाद आचार्य माहाराजने भी दो वक्त अपने साधुओंको जं० वि० को बुलवाने के लिये भेजे ! लेकिन जं० वि० आये नहीं. तब आचार्यश्रीने चार बजे अपना व्याख्यान चालु किया, और आराधनामें पर्वतिथियोंकी क्षयवृद्धि नहीं ही होती है, ऐसा शास्त्रोंके पाठसे सिद्ध किया. इसके बाद पालीतानासे बारा कोशकी प्रदक्षिणाका संघ निकला उसमें जं० वि० गयेथे. और चोक मुकाममें व्याख्यान दिया, उसमें तिथि संबंधि विषयको लेकर जं० वि० बोले कि-पर्वतिथियोंकी क्षयवृद्धिको नहीं माननेवाले अपने सम्यक्त्वमें दुषण लगाते है. वगैरह जोभी कुछ मनमें आया सो प्रलाप किया! ये समा. चार फाल्गुन शुक्ल ११ रातको उस संघमें से किसीने आकर श्री हंससागरजीको कहे. तब हंससागरजीके दिल में ऐसा आया कि-इन लोगोंकी कुटीलता कैसी हैं ? जब मैं समक्ष जाकर उपस्थित हुआ, तबतो कुछमी नहीं बोले ! व्याख्यानमें बुलवाये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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