Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 216
________________ पठानोंकी चौकी पहेरे नहीं रखे है ! चर्चाके लीये जो भी कोई आना चाहे वह खुशीसे आसकता है, वगैरह. इधर उ० मनोहरविजयजी फा० शु०३ को तलाटी आ गये और चतुथीको गांवमें आनेवाले थे. उनकी पाससे भी श्रीहंससागरजी माहाराजने 'पूर्वपत्रका जवाब नहीं आनेसें' फिरभी पत्र दिया, उसको भी आप सुन लीजिये ! श्री स्थल-पालीताणा फा. सु. २ "उपाध्यायजी महाराज श्रीमनहरविजयजी योग्य वंदनपूर्वक जणाववान के नीचे मुजबनो पत्र आपने पहोचाइयो छे. (पहले दिये हुए पत्रकी नकल दर्ज करके लिखा कि) बे दिव. समाज वखत आपवा महेरबानी करशोजी. लि. हंससागर इस पत्रका जबाव उ० मनहरवि० ने भी दिया नहीं! और शामको ही तलाजा तरफ रवाना हो गये! बादमें फाल्गुन शुक्ल अष्टमी सुबहको बारा बजे आये और शामको साडेतीन बजे तो रवाना (पलायन) हो गये! अब एक तरफकी चर्चाका मामला तो खत्म हुआ, विचमें फाल्गुन शुक्ल पंचमीको श्रीहंससागरजी, जंबुविजयजीके पास गये; तब जंबुविजयजी बोले कि-मैं मौखिक चर्चा करना नहीं चाहता! लेखीत चर्चा करनी हैं. और वोभी तुम लिख भेजो! यहां रुबरुमेंतो नहीं। वगैरह उंधीचित्ति बहुत बातें करने लगें-बादमें श्रीहंससागरजीके कहनेसे जं० वि० ने अपना मंतव्य जो लिखवाया उसे मैं मोखिक चर्चा करना नहीं चाहता, लेखित चर्चा करनी है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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