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आ तिथि संबंधि निर्णय थवानी आवश्यकता हती अने अमारी आ धारणामां अत्रेनो श्रीसकलचतुर्विध संघ सामेलज छे. ता. २०–२–४० लहेरुभाई मोतीलाल
इस पत्रिका के जाहिर होते हुए भी जं० वि० ने कुछ जवाब तो दिया नहीं, लेकिन पालीतानासे माघशुक्ल १३ को कुच मनालि !!! घेटी, कदंबगिरि, जेसर आदि गांवों में फिर फिर गारीयाधार पहोंचे ! इतने में वीरशासन में दो अमावास्या बाबत एक खोटा लेख श्रीसिद्धिरिके नामसे 'सुनने में आया है कि उन्होने छपवाया सो' प्रगट हुआ ! इतनाही नहीं किंतु जनarat और भ्रम में डालने के लिये उस लेखके हजारो हेन्डबील भी छपवाये ! उस लेख में ऐसा भी जुठ छपवाया कि - "श्री - सागरानंद सूरिजी महाराज पण पहेला वे अमावस आदि मानता हता " कितना अन्याय ? कितना झूठ ? आचार्य महाराजके लिखान के पूर्वापर के संबंध को छोड़कर बिचमें आये हुए अनुकुल शब्दोकों लेकर ही एसा झुठ लिखने लिखानेवालोंने महा व्रत ग्रहण करते वक्त शायद झूठ बोलना बुलवाना, झूठ लिखना लिखवाना आदि की जगह रखी होगा, ऐसा विचार श्रीहंससागरजी की जं० वि० के झुठ प्रचारसें आनेपर श्रीहंससागरजीने जो एक पत्रिका छपवाकर जाहिर की, उसकोभी मैं पढ़कर सुनाता हूं. ( पढ़ते हैं)
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