Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 208
________________ (१८४) सागरजीने लाग्यं अने तेथी तेओए माहाराज जं० वि० के - 'जैओ तत्वतरंगिणीनुं भाषांतर करीने बहार पडावनार छे, तेओनी' उपर एक चिट्ठी ते जुडाणुं साबीत करवा जवा माटे मुदत मांगवानी मोकली हे. आबु सांभली अमोए तपास करी तो ते वात अमने सत्य मालुम पडी. अने तेथी अमोए तेनी नकल मेलचा प्रयत्न कर्यो महेनतेथी मेलवेल नकल नीचे प्रमाणे छे. पालीताणा माह सुद ८ माहाराज आत्मारामजीना समुदायना आचार्य प्रेमविजयजीना शिष्य उपा० जंबुविजयजी योग्य. उचित वंदनपूर्वक जणाववानुं के हुं शिहोरथी आव्यो छु. श्री कर्मप्रकृति अने पंचसंग्रहनी प्रस्तावना तथा प्रश्नोत्तरना बीजा भागनी टीप्पणीमां अभिप्राय पूर्वक जुठ्ठे अने शास्त्रविरुद्ध तमारूं लखाण छे, तेने साबीत करवानुं तमो बीजो वखत आपो ते उपर राखी हालमां श्रीचतुर्विध श्रीसंघनी आराधनीय तिथिनी बाबतमां तमोए श्रीततरंगिणीना अर्थमां अभिप्राय पूर्वक मृषावाद अने शास्त्रविरुद्ध लख्युं छे तेने साबीत करवा तमारी पासे आवकुं छे; माटे एक बे दिवसमां वखत आपशो. लि. हंससागर हजी सुधी उपरनी चिडीथी मांगवामां आवेल मुदत माहाराज जंबुविजयजी तरफथी आपवामां आवी होय एम जणातुं नथी. अमारी इच्छा ए तो जरूर रहे के के - पालीताणा स्थानमा बे टोलीमां परस्पर विभागथी चार टोली न थाय माटे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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