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ह, वास्ते यहां विशेषणकी जरूरत नहीं रहती है. और यहां अमावस के साथ विशेषण नहीं होने से सिद्ध हुआ कि - श्रीमान् हीरसूरिजी माहाराज पर्वतिथिकी वृद्धि नहीं मानतेथे, लेकिन भोली जनताको भ्रममें डालने के लिये जंबुवि० ने मन माना 'बिना संगतकाही' लिखमारा है ! उन्हे खबर नहीं कि ये खोटी युक्तियें कहांतक चलेगी ? ( इतने में )
गुला० - ( वकीलसा०से) आप उस, कथाको भूलगये है क्या? वकी० - कोनसी कथा १
गुला० - श्रीमान् अमिविजयजी माहाराज " धके जतरे घकाओ' की कथा कहतेथे न १
वकी० - मैने यह कथा सुनी हो, ऐसा मुझे ख्याल नहीं आताः खैर आपही कह जाईये.
गुला० - अच्छा तो सुनिये ! एक छोटे गांव में एक ठाकुर रहताथा उसको पांचसात हजारकी जागीर थी. एक रोज उसके मनमें ऐसा आया कि अपने से पांचसात कोशके फासले पर जो यह मोटा शहर हैं, और वहां पर जो राजा राज्य करता है, इस राजाको यदि मैं जीत लेउं तो में भी एक मोटा राजा बन जाउँ इसके लिये कुछ उपाय करना चाहिये, शोचते शोचते शोचा कि - युद्ध करके तो में इसको जीत नहीं सकता, सबब उसके पास सामग्री भरपूर है, और मेरे पास तो इतनी सामग्री नहीं है. अबतो एक उपाय है कि- ब्राह्मणोको बीठाकर जाप करवाना चाहिये, ताकि मेरी मनोकामना सिद्ध हो जाय, ठाकुर साहब
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