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(१६४) इसीसे सिद्ध हुआ कि शास्त्रकार शामिलतिथिको मानतेही नहीं थे. यदि मानते होते तो वादीको ऐसा ही कहते कि-त्रयोदशी चतुर्दशी साथ नहीं बोलते हुए त्रयोदशी त्रयोदशी ही क्यों बोलता है ? और ऐसातो नहिं बोले ! इसीसें सिद्ध ही है किशास्त्रकार, तिथिको शामिल मानते ही नहीं थे. श्रीमान् इन्द्रमलजी! आपके पूज्य जं० वि० ने इस तत्वतरंगिणीके भाषांतरमें-ग्रंथ और ग्रंथकारके आशय विरुद्ध, और ग्रंथमें नहीं कहा हुआ ऐसा अपना मनमाना कितनाही जो लिख दिया है, उसे आपने मंजुर किया है। इसके अलावा आपके पास कोई भी आधार है ही नहीं ! पर्वतिथिके क्षयके वक्त पूर्वतरतिथिके विधानमें परंपरासे भी यही बात चली आती हैं कि-'पूर्णिमा अमावास्याके क्षयमें त्रयोदशीका क्षय, व वृद्धिमें त्रयोदशीकी वृद्धि मानना.' इसके पुरावे में श्रीमान् देवमूरिजी माहाराजका पट्टक दिखाता हूं सो वहभी आप देखिये ! (धूलचंदसे) धूलचंद ! वे पट्टक लाओ.
वकी०-(धूलचंदके लाये हुए पट्टक पढकर सुनाते है.) श्रीविजयदेवीयानां पूर्णिमामावास्ययोवृद्धौ त्रयोदश्या ऐव
वृद्धिर्भवतीति मतपत्रकम् श्री तिथिहानि वृद्धि विचारः। अथ तिथिवृद्धिहानि प्रश्नोत्तरं लिख्यते ।
इन्द्रवृन्दनतं नत्वा, सर्वज्ञ सर्वदर्शीनं । ज्ञातारं विश्वनत्वानाम् , वक्ष्ये शास्त्रानुसारतः ॥ १॥ कस्यतिथेः क्षये जाते,
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