Book Title: Parvtithi Prakash Timir Bhaskar
Author(s): Trailokya
Publisher: Motichand Dipchand Thania

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Page 205
________________ (ii) इन्द्र०- मैं हाजीर तो नहीं था लेकिन वीरशासन में ऐसा पढ़ाया. वकी० - वीरशासन में आया उसको ही आपने सच्चा मान लिया क्या ? आपकी बुद्धिको भी धन्य है ! यह आपके पास जुहारमलजी बैठे है, इन्हीको पुछ देखिये कि क्या बनाव बनाथा ? ( जुहारमलजी के सामने देखकर) कही ये साहब ! आप तो वहां हाजीरही थे न १ सच्ची हकीकत क्या है ? जुहा० - जी हां. मैं हाजीर तो था परंतु इतना ही जानाता हुं कि - मुनिमाहाराजोंके तंबुमें होहा खूब ही हुआ लेकिन मुझे पता नहीं कि मामला क्या है ? हां वापीस लोटते वक्त रास्ते में कितनीक गुजराती ओरतें ऐसा बोलती थी की बाराकोशके संघमें जं०वि० बोले, इसी से यहां पर सागर जीवाले बोले. इसके अलावा मैं कुछ नहीं जानता. आपको यदि सच्ची हकीकत जानना होतो आप सहस्रमलजीको बुलवाईये. वे सबही बात आपको सविस्तर सुनावेंगे. उनको चर्चा संबंधि शौख भी है; वास्ते उन्हीको बुलवाईये. वकी० - सहस्रमलजीका मुकाम कहां है ? वृद्धि ० - पड़ोस वाले मकानही में है ! आप कहें तो बुलवाऊँ. वकी० - हां बुलवाईये. ( वृद्धिचंदजी अपने भाई जयमल - जीको भेजकर सहस्रमलजीको बुलवातें हैं. सहस्रमलजी भी जयमलजी से चर्चाका प्रसंग सुनकर हातमें कितनेक कागजात लेकर (आते है.) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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