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श्रीदीप विजयजीका पत्र.
स्वस्तश्री भरुच सुरत कहानम परगणे श्रीविजयानंद सूरिगच्छिया समस्तसंप्रदाय प्रति श्रीवड़ोदरेथी लि. पं० दीपविजयनी वंदना. बीजुं तिथि बाबत तुमारो खेपीयो आव्यो हतो, साथै पत्र मोकल्युं ते पहोतुं हस्यै ? || वी० || अमास पुन्यम त्रुटती होइ ते उपर देवसूरिजीवाला 'तेरस घटाड़े छे तमे पड़वो घटाड़ो छो' ए तमारे कजीओ छे. पण बेहु एक गुरूना शिष्य वाला छो || बेहु जण हीरप्रश्न, सेनप्रश्न उपर लडो हो । अने मां वीचार करीने बोलता नथी, ते प्रत्यक्ष गच्छममत्व जगाइ छे; पाटे विचार.. ......... सं. १८७१ आसोज सुदी १ विना 'स्वारथें श्याने विग्रह जोहएं ? पाधरो न्याय छह ते करजोजी. इस पत्र सेंमी यह साबीत है न ? कि - श्रीदेवसूरि वाले - पूर्णिमा 'अमावास्या के क्षयवृद्धिमें त्रयोदशीकी क्षयवृद्धि करतें हैं और इस पट्टकका उद्देश्य भी यही है ?
इन्द्र० - ऐसे कागजतो पूज्य उपाध्यायजी माहाराजके पासमें भी बहुत है. देखिये पर्व० प्र० पृ. १४६ में लिखते हैं कि - " * प्रतिपद्यपि पूर्णिमायास्तपः पूर्यते परं वैयाकरणपाशैः
* प्रतिपदा में भी पूर्णिमाका तर पूर्णकिया जाता है परंतु अधम वैयाकरणो उदयवाली त्रयोदशी में चतुर्दशीका भाचरण करते है वह असत्य है. क्योंकि उदयवाली चतुर्दशीकी ही भाराधना की जाती है जिस करके बहुतसे घेवर होते हुए बकुश (कुकश 1 ) का भोजन कोन खावे? मूर्णिमा क्षयवक्त त्रयोदशी में चतुर्दशी नहीं करना.
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