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(१७८) पचास वर्षका रवैया कहते थे, वहतो निर्मूल ही रहा न ? और भी जं० वि०के झुठेपनको दिखाता हूं. पर्युषणाके अट्ठम (तेला) और भाद्रपद शुक्लापंचमीके उपवास संबंधि श्रीहीरप्रश्नमें दो पाठ ऐसे है कि-प्रश्न:--'येन शुक्लपंचमी उच्चरिता भवति स यदि पर्युषणायां द्वितीयातोऽष्टमं करोति तदापंचम्यामेकासनक करोति उत यथा रुच्येति ॥ उत्तरं-येन शुक्लपंचमी उच्चरिता भवति तेन मुख्यवृत्त्या तृतीयातोऽष्टमः कार्यः, अथ कदाचित् द्वितियातः करोति तदा पंचम्यामेकासनकरणप्रतिबन्धो नास्ति, करोति तदा भव्य मिति" औरभी देखिये "प्रश्नः-पर्युषणोपवासः पंचमी मध्ये गण्यते न वा? । उत्तरं-पर्युषणोपवास:षष्ठकरणसामर्थ्याभावे पंचमी मध्ये गण्यते," नान्यथा! ___ अर्थः-जिसने शुक्लपंचमी उचरी हो वह यदि पर्युषणा पर्वके अंदर दूजसे अट्ठम (तेला) करे तो उसको पंचमीके दिन एकासन करना चाहिये या नहीं ? इसका उत्तर. जिसने पंचमी उचरी हो उसने मुख्यवृत्तिसे तो तीजसेही अठम करना चाहिये. कदाचित दूजसे किया होवे तो पंचमीको एकासन करनेका प्रतिबंध नहीं है । यदि एकाशन करे तो अच्छा. प्रश्न-दूसरा अर्थ:-पर्युषणा (संवत्सरी) का उपवास पंचमीके अंदर गिना जाता है या नहीं ? उत्तर-पर्युषणाका उपवास छठ (बेला) करने की शक्ति नहीं होवे तो पंचमीमें गिना जाता है, अन्यथा नहीं. यहां पर जं० वि० पर्वतिथि० पृ. ७७ पंक्ति ८ में लिखते है कि-' पाठोथी समजी जाओ. स्वतंत्र पंचमीनो तप पण
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