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श्रूयते क्षये पूर्वातिथिः कार्या वृद्धौ कार्या तथोत्तरा । श्रीवीरज्ञाननिर्वाण कार्य लोकानुगैरिह || १ || इति श्रीश्राद्ध विधौ प्रतिपादितमस्ति तस्मात् कदाग्रहं त्यक्त्वा यथावदागमानुसारेण पूर्वाचार्य परंपरया च प्रवर्तितव्यं परं कदाग्रहेण कृत्वा कुमार्गप्रवर्तनं न कार्य. उत्सूत्रप्ररूपणेनानंतसंसारवृद्धेः । तस्मात् सिद्धं चैतत् पूर्णिमाभिवृद्धौ त्रयोदशीवर्धनम् । इति श्रीप्रश्नविचारः सं. १८९५ वर्षे चैत्र सुद १४ दिने पं भोजाजीए लखी आपी छे, तथा १३ । १४ । ०)) ए त्रिणी तिथि पुरी छतई जउलोक चउदशी दीवाली करइ तउ तेरसी चउदसीनो छठ करवउं. जे माटर श्री माहावीरनुं निर्वाणकल्याणक लोकनेइ अनुसरी करवु कहिउं छइ. श्रीश्राद्धविधिमांहि "क्षये पूर्वातिथिः कार्या, वृद्धौ कार्या तथोत्तरा श्रीमहावीरनिर्वाणं ज्ञेयं लोकानुगैरिह ॥ १ ॥
अर्थः- पूर्णिमा अमावास्याकी वृद्धिमें त्रयोदशीकी वृद्धि होती हैं ऐसा श्रीविजय देवसू, रिजीवालोंका मतपत्रक श्रीतिथिहानिवृद्धि विचार.
अब तिथिहानिवृद्धि संबंधि प्रश्नोत्तरसार्थ लिखते है.
इन्द्रोके समुहने नमस्कार किया है जिनको, जो सर्वज्ञ सर्वदर्शी है जगतके तमाम तत्रोंको जानते हैं ऐसे श्रीजिनेश्वर देवको नमस्कार करके शास्त्रानुसार मैं कहता हूं. कोनसी तिथिके क्षयमें कोनसी तिथि पालना और वृद्धि हो तब कोनसी तिथिको करना. यह सब मैं कहता हूं. यहां पहले तिथिका
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