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करना और पूर्णिमाका क्षय हो तब उसका तप त्रयोदशी चतु. दशीमें करना. देखिये ! पूर्णिमाके क्षय संबंधमें उत्तर दिया है कि-"त्रयोदशीचतुर्दश्योः" जं० वि० की मान्यतानुसार तो ऐसा ही उत्तर देनाथा कि-" चतुर्दशीतपसा सरति" ऐसा उत्तर तो नहीं देते है. और विस्मृति के लिये भी उत्तर दिया है कि-त्रयोदशी चतुर्दशीमें तप करना भूल जाय तो पड़वेके दिन करे. अर्थात् त्रयोदशीके दिन चतुर्दशी करना भूल जाय तो एकमके दिन पूर्णिमाकी आराधना करे ऐसा फरमाया है. वास्ते श्रीमान् हीरसरिजी माहाराज पूर्णिमाके क्षयवक्त त्रयोदशी ही का क्षय करते थे. वह साफ २ सिद्ध है. अगर ऐसा नहीं करते होते तो आपकी मान्यतानुसार "चतुर्दश्यां" अगर "चतुर्दशी तपसा सरति" ऐंसाही कह देते. परंतु ऐसा नहीं कहते हुए "त्रयोदशीचतुर्दश्योः " ऐसा ही कहा है इसको आप स्वयं समझ सकते हो.
इन्द्र०-मैं तो इसे ठीक तौरसे समझ सका हुं, आपही नहीं समझे है। वास्ते अब आप समझिये कि-पूर्णिमाका तप त्रयोदशीमें करे, और त्रयोदशीमें करना भूलजाय तो एकमकों करे, नकि चतुर्दशीको पलटाना. ..
वकी०-आप हरवक्त भोग गंध समाप्ति वगैरह की बातें करते हो, तो आपसे मेरा प्रश्न है कि-त्रयोदशी और एकममें पूर्णिमाका उदय है, भोग है, या गंध है, या समाप्ति है ? क्या है? सो कहिये, और चतुर्दशीके पहले ही पूर्णिमा हो जाती है
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