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पूर्वअपर्व तियिका क्षयः और तच्चतरंगिणीकी १८ वीं गाथामें भी ऐंमा फरमाते है.
वकी०-वाहजी! वाह ! ! आपकी बुद्धिको भी धन्य है! मैं पहले इस बातका समाधान करचुका हूं और आपने मंजुर भी कर लिया है, तोभी आप इधरतिधरसे लोटकर पीछे वहांके वहांही आते हो ! अच्छा, आपही कहिये कि-प्रश्नकारका प्रश्न तिथिका है या तपका ?
इन्द्र०-प्रश्नतो तपका है.
वकी-तो कहिये उत्तरदाता तपके विषयको छोड़कर तिथिमें क्यों जावेंगे? दूसरी बात यह है कि-आराधनासे तिथि नहीं है किंतु तिथिसे आराधना है. इस बातको आपभी कबूल करचुके हो और आपके पूज्यश्रीभी पर्वतिथिक्षयके वख्त पहली अपर्वतिथिका क्षय कबूल कर चुके है ! इसके पुरावेमें प्रवचन वर्ष ६ ठा अं.१२-१३-१४ पृ. १७७ मैं आपको पहले दिखा चुका हूं और अब आप तस्व. अढारवीं गाथा भी सुनिये. "लोएवि अजं कजं गंथप्पमुहंपि दीसए सव्वं । तं चेव जमि दिवसे पुण्णं खल होह सपमाणं ॥१८॥"
टीका-लोकेऽपि च यत् सर्व कार्य ग्रन्थप्रमुखं दृश्यते तद् यस्मिन् दिवसे संपूर्ण भवेत् , चेव एवकारार्थो व्यवहितः संबद्धयते, स एव दिवसः प्रमाणं, यथा अमुकवर्षे तत्संबंधिनि च अमुकमासे तत्संबंधिनि अमुकवासरेऽयं अन्योऽकार्यलेखि वा, यद्यपि तस्मिन् दिवसे श्लोकमात्रमपि कृतवान् लिखितवांश्च
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