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कि-यहतो मेरा मोटाभाई है! कुछ परवाह नहीं. मैं तो यही जपुंगा कि-"थे जपो यो मैं जपां" बस, फीरतो बैठे माला जपनेको. 'थे, जपोसो मैं जपा २' इतने में कोई तीसरे वाडव आ पहुंचे! उनकोंभी ठाकुरसाहबने वहां बिठाये उन्होने भी लड्डुओंकी खबर लेने बाद पूर्वस्थित भूदेवोंसे पुछा कि-आप क्या जाप जपतें है ? तब पहले ने कहा "राजाजीरा जाप जपुं २" दूसरे भूदेव बोले कि "थे जपो सो मैं जप २” तीसरेने शोचा कि मंत्राक्षरको नहीं गिनना और मफतका माल उड़ाना, यह पोल कहांतक चलेगी? बस मैं तो यही माला फीराउंगा कि-"या पोल कढाकतक"फिरतो बैठे भूदेव माला फीरानेको. "या पोल कढाकतक २" इतने में कोई चोथे भूदेव आपहुचें! उन्होने भी मोदकोंको इन्साफ दिया, और हाथमें माला लेकर बैठे जाप करनेको. पहलेवाले तीनोसे जापमंत्र सुने, और शोचने लगे कि-मुझे क्या जपना चाहिये ? इतने में विचार आया किमैं तो यही जगूंगा कि-'धके जतरे धकाओ'बस बैठे जपनेको! "धके जतरे धकाओ २" इस कथाको अब मैं घटाता हुं सो आप अब सावधान होकर सुनना. ठाकुरकी जगह रामविजयजी है. जिनको सबही आचार्योसे मोटे बननेकी भावना हो आई तब पर्वतिथिकी क्षयवृद्धिरूप युक्ति निकाली ! अब इस युक्तिको चलाना ही है। इसलिये चार व्यक्ति जापवाले बिठाये ! पहला नंबर-प्रेमसूरिजीका कि-"राजाजीरा जाप जपु” अर्थात् बस रामविजयजीने जो कहा सो सच्चा ! दूसरे नंबरमें लब्धिमूरिजी,
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