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(१२५) ही कहिये ! कि चौमासेकी समाप्ति तो प्रतिक्रमण बाद है न ?
इन्द्र०-हां, प्रतिक्रमण ही में चौमासे संबंधि पाटपाटले वगैरह वस्तुए श्रावकोंके सुप्रत की जाती है. अर्थात् चौमासा खत्म हुवा माना जाता है. __ वकी०-उसदिन सुबह आपके पूज्यश्री यात्रा करनेको जावेंगे. तो वह यात्रा चौमासेके अंदर गिनी जायगी! या सियालेके अंदर ? · इन्द्र०-ऐसा मोका तो कभी दसवीस वर्षमें आता है, तब अपवादसे ऐसाभी होवे तो हर्ज जैसा नहीं है.
वकी०-अच्छा जाने दीजिये इस चर्चाको, आपको इसकी किम्मत ही नहीं है, तो अब आप आगेको पढ़ीये. . इन्द्र०-(तत्व० लेकर पढ़ते है) "अथ घृतार्थिनो दुग्धादिग्राहकत्वेन नायं नियम इत्यारेकामधरीकर्तुमाह-"अब घृता
र्थीको दुध वगैरहका ग्राहकपना होने से यह नियम लागु नहीं होता, ऐसी शंकाको दूर करने के लिये कहते है"जंदुद्धाइग्गहणं घयाभिलासेण तत्थ न हु दोसो। तद्दारेण तयट्ठी अहवा कजोपयारेणं ॥ ८॥" . घृताभिलाषेण यदुग्धादिग्रहणम् , आदिशब्दादजताद्यपि, तत्र 'न हु दोसो' नैव दोषो-व्याप्तिभंग लक्षणो भवति, यतः तद्द्वारेण-घृतार्थित्वद्वारेण दुग्धं गृह्णन् दुग्धार्थ्यपि घृतार्थ्यमित्युच्यते, अथवा कारणे कार्योपचारात् दुग्धं गृह्णमपि घृतं गृहनेवोच्यते, न पुनर्दुग्धमिति गाथार्थः॥
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