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आती है. तब पूर्णिमाका क्षय होता है. तो कहिये ! त्रयोदशीके दिन चतुर्दशीका भोग है, या नहीं?
इन्द्र०-'उदयंमि' वाला नियमतो नहीं रहाने ? वकी०-आपके गुरुने 'उदयंमि'का पाठ आपको ठीक पढ़ाया है. अच्छा, कहिये ! पूर्णिमा क्षयके बख्त तुम्हारे दोतिथि शरीफ होती है तब उदयंमिके नियमसे समस्त दिन रही हुई चतुर्दशी में पूर्णिमा शरीक कैसे होगी? और उसदिन उदयवाली पूर्णिमा कहांसे लाओगे? चतुर्दशीके दिन दोनोकी आराधना तो करना है, और दोनोकी आराधना होती है ऐसा भी आप बोलते हो! साथ २ उदयंमिकी घोषणाभी करते हो ! इसीसें कहता हूं कि आप सामान्य और विशेषको ख्यालमें रखिये ताकि आपको सर्व प्रकारसे मुभीता हो जाय. 'उदयंमि' वाला नियम सामान्य है और हमेशाके लिये है, परंतु कारण विशेषमें तो 'क्षये पूर्वो का नियम ही लगेगा.
इन्द्र०-आपके विशेष नियमकी और दृष्टि करते है तब विशेष नियमतो पूर्वतिथिको ही उलटाना कहता है, न कि पूर्वान्तरको.
वकी०-पूर्वान्तरतिथिभी पूर्वा है या अपरा? इन्द्र०-हैतो पूर्वा.
वकी-जब कि पूर्वमें पर्वतिथि पड़ी हुई है तो उससे पूर्वतिथिका क्षय हो जायगा! सबब त्रयोदशीभी है तो पूर्वाही! न कि परा.
इसके अलावा पूर्णिमा और अमावास्याके क्षयमें पूर्वतरका याने त्रयोदशीका क्षय करनेसें दोनो ही दिन सूर्योदय पहले से
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