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(१३७) हाथमें पानी लेकर सोगन खाके मनाने जैसा है. (नकि शास्त्रसें.) पाक्षिक तरिके पूर्णिमाकों ग्रहण नहीं करना इस विषयमें सम्मति दिखानेवाला सूत्र, उत्तरार्द्ध गाथासें दिखाते है, सूत्रकृतांग नामके दूसरे अंगमें कहा है कि-चौमासी संबंधि पूर्णिमाए तीनो ही आराध्यपने ग्रहण की हुई है. वही दिखाते हैं, चतुर्दशी अष्टमी आदि तिथियों में और महाकल्याणकपनेसे संबंधित पुण्यतिथित्वसे प्रख्यात ऐसी अमावास्याओमें व तीनो चौमासी संबंधि पूर्णिमाऐं, ऐसे धर्मदिनों में उत्तम अतिशययुक्त . जो पौषधव्रत-अभिग्रहविशेष, उसको-प्रतिपूर्ण-अर्थात् आहार शरीर सत्कार अब्रह्म और अव्यापार संपूर्ण वर्जनरूप-पौषध धर्मको पालन करता हुश्रा संपूर्ण श्रावकधर्मको आचरण करता हैं। इस प्रकार सूत्रकृतांग द्वितीयश्रुतस्कंधमें लेप श्रावकके अधिकार में कहा हुआ है. इससे विचार करने जैसा है किजो पूर्णिमामें पाक्षिककृत्य होता तो ग्रंथकार तीन ही पूर्णिमाओंको क्यों ग्रहण करते ? ऐसेही श्रीशद्युञ्जयमाहात्म्यके तीसरे सगके आठवें नौवे सैकड़ामें कहा है कि- "यावज्जीव प्रत्याख्यान पौषधादि तप विशेष करके अष्टमी चतुर्दशीको आराधन करता है, उसको अष्टमी चतुर्दशी पर्व संबंधि तपके निश्चयसे चलाने के लिये किया है यत्न जिनोने-ऐसे देवताओंसेभी वह चलायमान नहीं होता है ! राजा भी इस प्रकारसें बोलता हुआ कि-हे रंभे ! तुम सुनो! महान व्रतस्वरूप अष्टमी चतुर्दशीका पर्व पिताजीने हमको कहा है. हे भामिनि ! त्रयोदशी और
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