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(१४०) समाप्त हो गई सो ? पहला विकल्प तो असंभवनीय है. सबब एक दो कमती अगर ज्यादे १२० घड़ीयोवाली तिथिका प्रसंग आ जावेगा! १२० करीबवाली तिथि होती ही नहीं है. अब बकाया रहे हुए तीन विकल्पोंमें अन्यतिथिकी अपेक्षासे एक तिथिके अंदर एक दो घड़ीयों करके अधिकपना सूचन किया है. वैसे ही जो तिथि जिस सूर्योदयको प्राप्त होकर समाप्त होती है वही सूर्योदय उस तिथिको प्रमाण है. 'अन्यतिथियों के मुताविक'. इसका प्रयोग ऐसा है कि प्राप्त किये है दो सूर्योदय जिसने ऐसे लक्षणवाली तिथिको समाप्तिसूचक उदयप्रमाण है. व्याख्या की हुई वस्तुको समाप्तिसूचकपना होनेसे, जैसे अन्य तिथिये उदयसहित समाप्तिवाली है, वैसेही समाप्तिपूर्वक उदयके अभावमें तिथिका विद्यमानपना ही नहीं.
अब तिथिके वृद्धि और क्षयमें कोनसी तिथि लेना? इन्ही दोनो (प्रश्नों)का सामान्य लक्षण यहांपर उत्तरार्द्धगाथासे कहते है. जो तिथि जिसदिन याने रविवार आदि वार लक्षण दिनको समाप्त होती हो उसीहीको रविवार आदिवार लक्षणः रूप दिन उसीही तिथिपने स्वीकारना. यहां 'हु' शब्द एवकार अर्थमें है, इसीसेही "क्षये पूर्वी तिथिमा॑ह्या" क्षयके वक्त पूर्वतिथि लेना. सबब उमदिन दोनो तिथियोंकी समाप्ति होनेपूर्वक उमकी भी समाप्ति होनेसे, यह संवाद चतुर्थ गाथाकी व्याख्यामें कहा गया है.
पकी०-(इन्द्रमलजीको रोककर) इस गाथासे शास्त्रकारने
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