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(१२८). अभाव होनेसें. " अथ कारणलक्षणाभावमेव दर्शयति "
अर्थः-अब कारणके लक्षणाभावकोही दिखाते है"कजस्स पुरुषभावी नियमेनं कारणं जओ भणियं । तल्लक्खणरहिआवियभणाहि कहपुण्णिमा हेऊ ? ११
टीका-कार्यस्य नियमेन यत् पूर्वभावी, दीर्घत्वं चात्र लिङ्गव्यत्ययेन प्राकृतत्वात् , तदेव कारणं भवति, तल्लक्षणरहिताऽपि च पौर्णमासी कथं चतुर्दश्या हेतु:-कारणं स्यादिति भणकथय, मां प्रतीति गम्यं, यदि विनष्टस्यापि कार्यस्यभावि कारणं स्यात्तर्हि जगद्वयवस्थाविप्लवः प्रसज्येतेति गाथार्थः ॥ ११ ॥
अर्थ:-कार्यके पहले होनेवाला ही नियमसे (यहां दीर्घपना प्राकृत होनेसे है.) उस (कार्य) का कारण होता है, ऐसे लक्षण करके रहीत ऐसी पूर्णिमा, चतुर्दशीका कारण कैसे होती है ? सो तूं मुझसे कह ! यदि नष्ट होये हुवे कार्यका जो भावि (पदार्थ)कारण बन जाय, तबतो जगत् व्यवस्थाका ही लोप हो जाय ! इस गाथासें यह निश्चित हुआ कि कारण, कार्यके पहले ही होता है कार्य के बादमें उस कार्यका कारण कभी भी नहीं होता, ऐसेही त्रयोदशी, चतुर्दशीके पूर्व होनेसे चतुर्दशीका कारण बनती है, परंतु पूर्णिमा चतुर्दशीका कारण नहीं बन सकती है. “एवं सामान्यन्यायमपि समर्थ्य प्रकृते योजयति" इसी प्रकार सामान्य न्यायका भी समर्थन करके चालु विषयको कहते है. "एवं हीणचउहसि तेरसि जुत्ता न दो समावहइ ।
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