________________
(१०२)
हैं, तो भगवान कालिकसूरिजीने पहले वर्ष चतुर्थीको संवत्सरी करके दुसरे वर्ष जो पंचमी, 'कदीसे चली आती थी' उसको नहीं करते हुए चतुर्थीही रखी गई इसका क्या सबब १ इन्द्र० - यहतो श्रीमन् महावीरप्रभुने फरमाया था किसंवत्सरी कालिकसूरिसे पंचमीके बदले चतुर्थी की हो जायगी. वकी० - इसका सबब १
इन्द्र० - सबब क्या ! भगवानने ज्ञानमें ऐसाही देखा था. वकी० - और कोई खास कारणतो नहीं न १
इन्द्र०- ( कुच्छ शोचकर ) हां हां बेशक, आपका कहना ठीक है. अनन्तानुबंधिका प्रसंग आ जाता है, परंतु यह प्रसंग इसमें नहीं लग सकता हैं, सबब आराधना तो चतुर्थी की हैं, और तृतीया के साथ चतुर्थी भी हैं.
वकी० - तो क्या भगवान कालिकसूरिजीने चतुर्थीके दिन चतुर्थीकी आराधना की थी, या पंचमीकी १ पंचमीके साथ संबंध रखनेवाली जो संवत्सरी संबंधी आराधना थी, वही आराधना चतुर्थी के दिन की थी तोभी दूसरे वर्ष पंचमीको नही ले जाते हुए चतुर्थी ही को कायम रखी थी ! लेकिन आपतो एक वर्ष तृतीयाको करके दूसरे वर्ष चतुर्थीको करते है. सत्य बात समझाने परभी पक्षपातके चश्मे कहांतक घसीट जाते है ? दृष्टिरागभी कोइ अजीब चीज हैं. अनन्तानुबंधिकी आपत्ति आपको जबरजस्त आवेगी, खैर - इस विषयके शास्त्रीय प्रमाणभी मैं आपको दिखलाउंगा. हालमें आप अपनी युक्तियें बताते जाइयें.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com