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जो साध्य कार्य है, उसको नहीं रोकनेवाली वस्तुके साथ रही हुई इच्छित वस्तुको ग्रहण करना. 'जैसा गुडकी इच्छावाको रोटी के साथ लगा हुआ गुड" (रोटी, गुडकी अविनाशक वस्तु है. ) जैसे कोई मरणादि समयको प्राप्त करके ( याने मरने की इच्छावाला ) जहर युक्त दुधको ग्रहण करता है वैसेही जहर चिनाके दुधको ग्रहण नहीं करता है तो उसमें उसको विरोध नहीं है. अर्थात् अन्य वस्तुको ग्रहण नहीं करता है. सबब कि अन्यवस्तु स्वरूप दुध, साध्यवस्तुस्वरूप मरणनिमित्तक विषका अविनाशकपना है. ( वकीलसा० से ) इसमें क्या बात कही गई है, सो ठीक तौर से समझाईये.
वकी० - इसका भावार्थ यह है कि जैसे किसीको मरने के लिये जहर खाना है यदि शुद्ध जहर जो मिल जाय तो वह शुद्ध विषको लेता है, अगर शुद्ध विष जो न मिला और विषयुक्त दुध मिलगया तो वह विषयुक्त दुधकोभी ग्रहण करता है; तो उसको विरोध नहीं है. सबब कि ध्येय कार्य जो मृत्यु, वह कार्यतो दोनोंहीसे होता है. और विष बिनाके दूधको नहीं लेता है, क्योंकि उससे मृत्युरूप कार्य नहीं होता. अर्थात यहां पर कहने का मतलब यह है कि- इच्छित मृत्यु करनेवाला विषयुक्त दुधभी विषही है वैसेही इच्छित उपवासादि करने योग्य चतुर्दशीयुक्त त्रयोदशीभी चतुर्दशी ही है ! नकि आपके मुताबिक त्रयोदशी चतुर्दशी शरीफ ! विषयुक्त दुध पीनेवालेको 'विपयुक्त दुध पीया है' ऐसा कोई भी नहीं कहता, किंतु विष
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