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करते. क्योंकि-जैनशास्त्रकारतो फरमाते है कि-जिसकी स्थापना होवे वह पदार्थ, ओर उसकी स्थापनामें कुछ भी फर्क नहीं है "जिन पडिमा जिनसारीखी कही सूत्रमझार" इति वचनाद
इन्द्र०-यहतो सत्य ही है. लेकिन अष्टमीकी आराधना करने में अष्टमीकी स्थापना करनेकी क्या जरूरत है ? । ____वकी-०ढुंढीये भी यही कहते है न ? कि भगवानकी आराधना करने में भगवानकी मूर्ति (स्थापना) करनेकी क्या जरूरत है. ? ___इन्द्र०-आप हरवक्त ढुंढीयेको लाकर बिठाते हो यह तो अच्छा नहीं: सबब कि अपने चालु विषय ही को चलाना चाहिये.
वकी०-ढुंढीयेंका तो स्थापना बाबत दृष्टान्त है.
इन्द्र०-अच्छा, अन्य स्थापनामें तो नवकार पंचिंदियसें स्थापना करते है और प्रभुस्थापनामें मंत्रादिका विधान होता है, ऐसा सप्तमीके दिन अष्टमीकी स्थापना कैसे होती है ?
वकील-भरत महाराजने मरीचिके अंदर श्रीमहावीरकी स्थापना जैसे कल्पनासें की थी वैसे सुबहही प्रतिक्रमणमें तपचिंतामणीक कायोत्सर्ग वक्त बिचार करता है कि-आज कोनसी तिथि है ? आज कोनसा तप करना है ? उसवक्त बिचार आता है कि आज अष्टमी है. आज उपवास करना है. बस ऐसीही कल्पनासे अष्टमी वगैरह पर्वतिथियों की स्थापना होतीहै.
इन युक्तियोंद्वारा व शास्त्रकारके फरमानसे, और सेंकडों वर्षो से चलती हुई परंपरासे सिद्ध हुआ कि-पर्वतिथिके क्षयरक्त
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