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कि उस दिनको सप्तमी अगर त्रयोदशी आदि नामोंसे व्यवहार करना ही नहीं. ( अर्थात् आज सप्तमी है, त्रयोदशी है एसा बोलना तक नहीं. )
औरभी सुनिये ! तिथि सातम की गई और आराधना आठमकी ! एसा यदि आप मानेंगें तो ढुंढ़कपन आपको प्राप्त होगा, और स्थापना निक्षेप उठही जायगा !
इन्द्र० - यह कैसे १
वकी० - जैनशासन में कोई भी क्रिया बिना स्थापने के हो नहीं सकती यहतो आप जानते ही है न ?
इन्द्र० - हां यहतो मैं आनता हूं कि बिना स्थापनाके कोई क्रिया नहीं होती. और मुनिमाहाराज भी विहारादिमें कार्यवशात् दंडेको स्थापन करकेही "ईरिया ही " करते है.
वकी० - जैसे इरियावही, बिना स्थापनाके नहीं हो सकती है; तो फिर अष्टमी वगैरह पर्वतिथियोंकी आराधना, उनकीयाने पर्व तिथियों की स्थापना किये बिना कैसे हो सकेगी ? सबब कि आज अष्टमी है ऐसा माननाही होगा.
इन्द्र० - वह अष्टमी वास्तविक तो नहीं न ? है तो कृत्रिम न? वकी० - बस, अबतो साफ २ जाहिर हो गया है किआपमें ढूंढ़कपना घुस गया है.
इन्द्र० – कैसे ?
वकी० - यदि आपमें ढुंढ़कपना नहीं आया होता तो आप स्थापना निक्षेपाको "कृत्रिम" ऐमा संबोधन हरगिज नहीं
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