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यहां कहना क्या है ? यहां तो 'सामान्य शब्दसें अन्य पूर्णिमाएं लेनी है, इसी बातको पुख्ता करनेके लिये कहते है कि"जो कि आगमोंमें तीन पूर्णिमाएं और अमावास्याएं कही है, तो भी किसी जगहों पर सिर्फ श्रावकों के पौषध के लिये अन्य पूर्णिमाओंकों ग्रहण की हुई देखने में आती है" अब इसका मतलब आप समझीए. जैसे कि मैंने कहाकि-इन्द्रमलजी, मगनी रामजी आगये हैं, तो भी लालचंदजी, गुलाबचंदजी वगैराको जानेदो या लालचंदजी, गुलाबचंदजी वगैराको आनेदो. कहिये, 'तो भी' करके आप क्या संबंध बिठावेंगे, आनेका या जानेका ?
इन्द्र०-'तो भी' शब्दसें तो आने देनेका ही साबीत होता है, न कि आनेका.
वकी०-इसी तरहासे "तथापि" इस वाक्यसें अन्य पुनमोकाही ग्रहण होता है, और लेना भी है. यदि जो अन्य पूर्णि. माओंको लेनीही नहीं थी, तो "तथापि" इस वाक्यसे लगाकर "यावत् दृश्यन्ते" तक जितना लिखा है, उतना सब व्यर्थ ही है. क्यों कि-"तीनो पूर्णिमाएं और सब अमावास्याएं पुण्यतिथि
और कल्याणक पने से कही हुई है". बस इसीसे ग्रन्थकारका काम चल सकता था, सबब कि-तीन पुनमका कहनेसे अन्य पूर्णिमाओंका निषेध हो ही चुकाथा; तो फिर आगे को इतना बढ़ानेसे क्या फायदा था ? कि-जिससे 'न'कार बढ़ाया और उस 'न'कारको पुष्ट करनेके लिये इतना प्रयत्न किया? वास्तव में 'न'कार हे ही नहीं! यहां फक्त "कापि" ऐसाही पाठ शुद्ध है.
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