________________
(१२) चालु हो तब उसमें होती हुई क्षयवृद्धिके लिये नियमभी होना चाहिये ! इसीसे श्रीमान् उमास्वातीजी माहाराजने प्रघोष बनाया हो अगरतो आजकल (वर्तमानमें) भी कार्तिक वगैरह महीनोका व्यवहार होते हुएभी बहुतसी जगह 'जनवरी' आदि का व्यवहार देखने में आता है, वैसेही शास्त्रकारोंनेभी लिया हो. जाने दीजिये इस बातको मूल बात पर आईये कि-जंबु. विजयजीने जो सूर्यपन्नतिका पाठ दिया है वहतो भोली जनताको भ्रममें डालनेके लियेही है. जो पाठ सूर्यपन्नतिका दिया है उसमें तो साफ साफ लिखा है कि छ अवम रात्रिये और छ अतिरात्रियें आती है. (बीचहीमें शिघ्रतासे)
इन्द्र०-कहिये, साहब! आपही मंजुर करते है न किछ अतिरात्री याने वृद्धितिथि ?
वकी०-वाह, जी वाह ! 'अतिरात्री' शब्दका अर्थ वृद्धि तिथि आपके गुरुजीने लिखदिया और आपने मान भी लिया! और उसी मान्यतापर आप एकदम उछलभी गये! अच्छा, अब आपही कहिए कि जब छ तिथि बढ़ती है और छ तिथि कम होती है, तब तो वर्षके दिन ३६० ही होवे'गे' न?
इन्द्र०-जैन ज्योतिषकी गिनतीमें ऐसा ही होता होगा.
वकी०-इससे क्या आप ऐसा कहना चाहते है कि-जैन ज्योतिष में अधिक मास नहीं होता है ?
इन्द्र०-इस घटती बढ़ती के हिसाबसें तो ऐसाही है, लेकिन मैंने ऐसा भी सुनाथा कि-जैनपंचागमें तो पौष और
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com