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धूलपकप्रकाशदया हुआ इसका खुला
आषाढ़ मासकी ही वृद्धि होती है.
वकी०-अच्छा, तो अब आप ही कहिये कि जब ३६० दिवसका वर्ष होता हो, तो अधिक मासको कहां बिठावेंगे? दर असल बात यह है कि-अहोरात्री सूर्य के साथ संबंधवाली है, और तिथि चंद्रके साथ संबंधवाली है. इसका खुलासा भी लोकप्रकाश नामक ग्रन्थमें दिया हुआ है, देखिये. (धूलचंदसें) अपने साथ लोकप्रकाश लाये हो क्या?
धूल०-साथमें तो नहीं लाया साहब !
वकी-अच्छा, तो सामने जो जैन लायब्ररी है वहांसे ले आओ.
धूल-इसवक्त तो लायब्रेरी बंद है.
वकी०-लायब्रेरीके सेक्रेटरीकी दुकान नीचे ही है. मेरा नाम लेकर सेक्रेटरीको कहना ता कि वे निकाल देवेंगें.
धूल०-बहुत अच्छा. (धूलचंद जाकर वहांसे लोकप्रका. शके चारों ही भाग ले आता है, और वकील साहबको देता है. वकीलसाहब लोकप्रकाश भा. ३ पत्रांक. ३९७ का पूर्व पृष्ट श्लोक ७६१ नीकालकर पढ़ते है.)
वकी०-अहोरात्र तिथीनां च, विशेषो यमुदीरितः । मानूत्पनाहोरात्रास्तिथयः पुनरिंदुजा ॥ ७६१ ॥ अहोरात्रो भवे. दो-दयादोंदयावधि। द्विषष्टितमभागोनाऽहोरात्रप्रमिता तिथि: ॥७६२ ॥ इत्यादिभिर्विशेषास्यादहोरात्रात्पृथतिथिः । द्विधा. त्वं च भवेत्तस्सा दिनराज्यंश कल्पनात् ।। ७६३ ।। .
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