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को कहते है कि-अष्टमीके क्षयवक्त अष्टमीको सप्तमीमें लाता है और चतुर्दशीके क्षयमें चतुर्दशीको पूर्णिमामें ले जाता है. यह जैसा अर्धजरतीय न्याय है, इसी तरहसे यहांपरभी दूजके क्षयवक्त हमारेको एकममें तो दूजकी मुख्यता और पूर्णिमाके क्षयमें चतुर्दशीमें पूर्णिमाकी मुख्यता छोड़कर चतुर्दशीकी मुख्यता होती है, यही अर्धजरतीय है न ?
वकी०-मैंनेतो गुप्तही रखाथा, लेकिन आपने तो खुला. सा ही करदिया, यहतो बहुत अच्छा किया है, परंतु इसमें तो आपको बहुतसी कठीनाइयें आवेंगी!
इन्द्र०-कैसे ?
वकी०-भाद्रपद शुक्ल ५ का क्षय है और चतुर्थी उदयवक्त सिर्फ एक घड़ी है उसवक्त आप मुख्यता चोथकी मानोंगे तो पंचमी लोपकी आपत्ति आवेंगी! यदि पंचमीकी मुख्यता मानोंगें दो चतुर्थीको छोडकर पंचमीके रोजही संवत्सरी और संवत्सरी प्रतिक्रमण करनेकी आपत्ति आवेगी.
इन्द्र-आपत्ति हे ही नहीं क्योंकि-"तस्या अप्याराधनं जातम्" इस वाक्यको मैं मुनाता हूं, और आप इस वाक्यकों दवाकर दूसरी तीसरी बातकोही लाकर यहां धर देते है.
वकी०-इस वाक्यको मैं दबाता नहीं हूं, लेकिन इसके अर्थको ठीक तौरसे समझाना चाहता हूं. अच्छा, आप "दोनो की आराधना" एसा अर्थ किस वाक्यसें करते हो? __इन्द्र०-"तस्याः " इस वाक्यसे.
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