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अर्थ:-अहोरात्र और तिथियों में इतना फर्क है कि-अहो. रात्र सूर्योत्पन्न है, और तिथियें चंद्रसे उत्पन्न होई हुई है ॥१॥ एक सूर्योदयसे दूसरे सूर्योदय तकका जो काल (टाईम) उसे अहोरात्र कहते है उससे बासठ वे भाग न्युन जो काल (टाईम) है वही तिथि ॥२॥ इत्यादि विशेषों करके अहोरात्र से तिथि पृथक ही है, और दिन व रात्री, ऐसी कल्पना करने से उस (तिथि ) के दो विभाग होते है. ॥ ३॥ सुना साहब ! श्रीमान् उपाध्यायजी श्रीविनयविजयजी महाराज जो कहते है, इससे साफ जाहिर होता है कि-तिथि और अहोरात्र जुदे ही है. औरमी देखिये ! तिथि तो २-३ मुहूर्त की होती है और अहोरात्रीतो संपूर्ण ३० मुहूर्तकी होती है. तो कहिये कि १२ (५९घड़ीके करीब) मुहूर्त वाली जो तिथि है, ऐसी तिथियों से कोनसी एक तिथि बढ़कर दूसरे सूर्योदयको स्पर्श करेगी ? क्योंकि जैनशास्त्रमें ५९ घडीसे अधिक तिथि मान तो है ही नहीं. आषाढ शुक्ल पूर्णिमाको युगान्त होता है, "श्रावण कुष्ण प्रतिपदासे युगका प्रारंभ होता है. श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के रोज सूर्योदयके साथ प्रतिपदाका भी प्रारंभ होता है." अब आप इसका गणित निकालकर बतलाओ कि-किस महीने में कोनसी तिथि दूसरे सूर्योदयको स्पर्श करनेवाली हुई ? कहिये कि कोई भी नहीं. इस से सिद्ध हुआ कि-हरएक तिथि अहोरात्र से न्युन होते होते बांसठमी तिथि सूर्योदयको स्पर्श किये बिनाहि पूर्ण होजाती और वही तिथि क्षय तिथि कहलाती हैं,
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