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णक तिथिओमा आगली क्षीण तिथिने ज्यारे तमे पाछली तिथिमां समावो छो त्यारे तेनो तप केम बीजा दिवसे अथवा आगल उपर आवती तेज कल्याणक तिथिए जुदो करी अपाय छे?
आ प्रश्ननो उत्तर ए छ के-कल्याणक तिथिनो आराधक प्रायः करीने तपश्चर्या विशेष करवाना नियम वालो होय छे. ते बे प्रकारनो होय छ (१) एकतो आंतरा रहीत तेनो तप करी आपनारो, अने (२) बीजो आंतरे तप पुरो करी आपनारो. पहेलो माणस एकज दिवसमां बे कल्याणक तिथि होवाथी बनेनो आराधक थया छतां बीजो दिवस लईने तेनो तप पुरो करी आपनारो थाय छे. जेवी रीते पूर्णिमानो क्षय होय त्यारे चौमासीना छ? तपना नियम वालो चौदशनी साथे तेरसज अथवा तो एकमेज उपवास करीने छठनो नियम पुरो करे के. वीजो आदमी के जे कल्याणक तिथिनो सांतर तप करवाना नियम वालो छे, ते आगल उपर आवती तेज कल्याणक तिथिए ते तप करी आपीने पोतानो नियम सफल करे छे. आमां कोई पण विरोध आवे तेवू नथी. तमारेतो अहीं पण थुक्ति नहि होवाथी माथुज खजालवान छेमाटे फोकट शंकाओ न राखो.
वकी०-(इन्द्रमलजीसे) अच्छा, अब आप आपके किये हुए अर्थ के साथ जं०वि० के अर्थको मिलान किजिये, पहली बात तो यह है कि-जं०वि०की-प्रतिक पाठका "तथापि" और "न कापि” इन दोनोवाक्योंका संबंध ही कैसे लगेगा? देखिये।
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